Monday, March 28, 2011

याद

एक अजनबी राज़ का एहसास है मुझे
इस भीड़ में भी वीरानियों की तलाश है मुझे
फितरतन हर मोड़ पर ढूंढ़ता हूँ तुझे
इन खामोशियों में तेरी आवाज़ की तलाश है मुझे .

हवाओं का रुख तेरी याद ले आये
खुशबू से तेरी ये आलम महक जाए
सावन की बारिशों में भीगा तेरा बदन
शोख सी वो तेरी अदा याद है मुझे

आने से देर पर वो रूठना तेरा
मानाने पर वो बात बात पे हस देना तेरा
मुस्कान होठों पर और आँखों में गुस्सा
मानाने रूठने के वो सिलसिले याद है मुझे

आते थे मुझसे मिलने को डरते हुए सनम
बैठते थे मेरे साथ सबको देखते हुए
होठों से ज्यादा आँखों से होती थी बातें
मुलाकातों का वो दौर भी याद है मुझे .

मेरे हर पैगाम को रखना सहेज कर
तारीखों की अहमियत का समझाना मुझे
कसमो से बंधना वो हरकतें मेरी
मेरे लिए उनकी परेशानियाँ याद है मुझे .


जलना वो उनका देख कर मुझे किसी गैर के साथ
मूह फेरना गुस्से से और बात ना करना
खोजना फिर बहाने मुझसे बात करने के .
यु छेड़ना महफ़िल में उनको याद है मुझे .

ज़िन्दगी आगे बढ़ गयी कई कारवां गुज़रे
चलता रहा मैं भी मंजिल की तलाश में
अब नहीं है वो फिर भी क्यूँ नहीं पता
राहों में उसकी मौजूदगी का एहसास है मुझे

2 comments:

  1. i am not a big fan of poems but i enjoyed this one :)

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  2. Nice one Sir.... n loved the lines
    मेरे हर पैगाम को रखना सहेज कर
    तारीखों की अहमियत का समझाना मुझे

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