आसमान से धूल ज़रा साफ़ कर दो
तारे आजकल यहाँ कम दिखते है
दिखती है परछाइयां दीवारों पे
देखने को इंसान यहाँ कम दिखते है
कुदरत से मांग चार पल सुकून ला दो
थके हुए चेहरे हर कदम दिखते है
ख्वाहिशो से झुकी दिखती है पलके
आँखों में सपने मगर अब कम दिखते है
खामोश ख्वाबो में सिसकती आहें
हसरतो की जलती लाशें दिखती है
दिखते है स्याही में डूबे पन्ने
समझ आये ऐसे कलाम अब कम दिखते है