Thursday, April 14, 2011

एहसास

आसमान से धूल ज़रा साफ़ कर दो
तारे आजकल यहाँ कम दिखते है
दिखती है परछाइयां दीवारों पे
देखने को इंसान यहाँ कम दिखते है

कुदरत से मांग चार पल सुकून ला दो
थके हुए चेहरे हर कदम दिखते है
ख्वाहिशो से झुकी दिखती है पलके
आँखों में सपने मगर अब कम दिखते है

खामोश ख्वाबो में सिसकती आहें
हसरतो की जलती लाशें दिखती है
दिखते है स्याही में डूबे पन्ने
समझ आये ऐसे कलाम अब कम दिखते है